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बर्तनों की बातचीत

Akash Deep

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कोरोनावायरस का टाइम था, सब लोग लॉकडाउन के कारण घरों में कैद थे, पूरा हफ्ता ऑनलाइन ऑफिस अटेंड करने के बाद राजेश इतवार के दिन थोड़ा रिलीफ महसूस कर रहा था. वैसे भी रोज-रोज दफ्तर और घर का काम साथ साथ करते हुए दिन निकल रहे थे तो छुट्टी का दिन और काम के दिन के बीच में कोई अंतर नहीं बचा था. फिर भी राजेश और उसकी धर्मपत्नी निशा को लगा की खाने के लिए कुछ नया बनाते हैं. अब लॉकडाउन में दोनों मिया बीवी ने घर का काम बाँट रखा था. राजेश की ज़िम्मेदारी आटा बनाने की और बर्तन धोने की थी.

घर में डोसा बैटर रखा था तो दोनों ने सोचा की आज डोसा खाते हैं. अब डोसे की चटनी के लिए मिक्सी का भी उपयोग होना था और डोसे को बनाने के लिए तवा भी दूसरे तरह का था. साथ में सोचा की चाय भी बना लेते हैं तो निशा ने भगोने में चाय भी चढ़ा दी.

राजेश ने सोचा की इतने डोसा तैयार होता है तो दोपहर खाने के लिए आटा बना लेता हू. अब वो जैसे ही आटा बनाने के लिए बर्तन ढूंढ़ने लगा तो उसने देखा की जिस भगोने में आटा बनाना होता है उसमे तो चाय बन रही है . उसने आटा बनाने के लिये दूसरा एक बड़ा पैन ले लिया .

अब पौन घंटे में बर्तन धोने वाली सिंक में नए तरह के बर्तन आ गए. अमूमन उन बर्तनों का उपयोग दो तीन हफ़्तों में मुश्किल से एक बार ही होता था .

सिंक में भांति भांति के नए और पुराने बर्तनों का जमावड़ा लग चुका था , रोज के उपयोग में आने वाली चम्मच से लेकर महीने बमुश्किल एक बार काम आने वाला डोसे का तवा एक साथ सिंक में बैठे साफ़ होने का इन्तजार कर रहे थे. तभी एकदम से मिक्सी के जार का ढक्कन भी सिंक में आ गया.

इतवार के दिन सारे बर्तन इसी तरह एक साथ सिंक में बैठे थे और उनके बीच में बातचीत शुरू हो गयी .

आइये देखते हैं उस बातचीत के कुछ अंश

चाय की छलनी : आज तो मिक्सी का जार भी आ गया है लगता है की कुछ नया बना है आज रसोई में. और भाई जार के ढक्कन क्या बनवा कर आ रहे हो रसोई में आज.

जार का ढक्कन : कुछ नहीं छलनी बहन आज पहले तो पुदीने की चटनी बनायीं पर उसके बाद पता नहीं कुछ प्याज टमाटर का छौंक लगाकर उसको मिक्सी में चला दिया . पता नहीं क्या बनाया था.

जार : अरे वो छौंका नहीं है, ये आज टमाटर की चटनी बनायीं थी इन लोगो ने .तुमको याद नहीं है क्या पिछले हफ्ते भी बनायीं थी ये वाली चटनी . पिछले हफ्ते ही तो निशा ने यूट्यूब से इसको बनाना सीखा था. पर ये चटनी इन लोगो ने किस पकवान के साथ बनायीं थी .

इतने में रोटी का तवा डोसे के तवे को देख कर बोलता है,

रोटी वाला तवा : सिरेमिक कोटिंग वाले भाईसाहब, बहुत दिनों में दर्शन दिए आज तुमने सिंक में. सब ठीक है न ? हमको लगा की कही तुमको मालकिन वापिस तो करके नहीं आयी .

सिरेमिक तवा : नहीं भाई वापिस नहीं किया, आज मेरा इस्तेमाल डोसा बनाने के लिए किया गया था. वैसे मुझे भी लगा था की कही ये लोग मुझे वापिस करके तो नहीं आएंगे क्योकि पिछली बार तुमने बताया था की आलू के पराठे बनाने के लिए भी इन्होने तुमको इस्तेमाल किया था . ये उत्तर भारतीय लोग हैं और डोसे जैसे आइटम कम ही बनते हैं इनके घर में.

रोटी वाला तवा : खैर छोड़ो , अच्छा लगा तुमको देखकर. अब देखो हमारी तो उम्र हो चली , थोड़ी बहुत टेफ्लोन की परतें भी उतर गयी है हमारे ऊपर से. मैं तो वैसे भी कुछ ही दिन का मेहमान हूँ उसके बाद कारखाने में जाकर मेरी पुनरावृत्ति होगी फिर मै किसी नए रूप में आऊंगा वापिस.

जार का ढक्कन : चलो ये बात तो पक्की हो गयी की आज घर में डोसा बना था. पर मुझे ये नहीं पता की कैसा बना था . निशा और राजेश खाने में बहुत कुछ बनाने की कोशिश करते रहते हैं पर ठीक से बना नहीं पाते. अब सब कुछ यूट्यूब से थोड़ी न सीखने को मिलेगा.

चाय का भगोना : बिलकुल सही बात की तुमने ढक्कन भाई . मालकिन पिछली बार चाय बनाते वक़्त मुझे भूल गयी थी और मेरे अंदर सारा दूध जल गया. इसकी वजह से मेरे अंदर काले काले निशान भी बन गए थे.

चाय की छलनी : हाँ मैंने भी देखा था की पिछली बार काफी जल गये थे तुम अंदर से.

चाय का भगोना : अब एक बात बताओ अगर चाय के साथ मेरे अंदर आटा भी बनाओगे तो थोड़ा बहुत कालापन तो आटे में भी जाएगा ही ना. अब मेरी वजह से आटे में गंदगी चली गयी और मुझे अच्छा नहीं लगा.

(चाय के भगोने को वैसे अच्छा भी नहीं लगता था की उससे बहुत ज्यादा काम लिया जाता था पर उसपे घर के लोग सबसे ज्यादा ध्यान देते थे और बाकी के बर्तन उससे इस कारण ईर्ष्या करते थे. इस उपलब्धि के लिए उसको बार बार बर्नर पे जाने से भी गुरेज नहीं था. अब उसको, चाय बनाने, आटा बनाने, दाल भिगोने, मैगी बनाने और अनेक कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता था.)

सप्ताहांत के उप लक्ष्य में सारे बर्तन एक साथ बैठे थे. ये मौका बहुत कम आता था की सारे बर्तन एक साथ बैठे होते थे और एक दूसरे का हाल चाल जान सकते थे.सारे बर्तनों को इस दिन का इंतजार रहता था. एक दूसरे से मिलने के लिए बर्तनों को गन्दा होना पड़ता था पर उनको इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी. यही प्रकृति का नियम था. अगर वो साफ़ हो गए तो उनको अपने अपने स्थान जाना पड़ेगा और वो एक दूसरे के साथ समय नहीं बिता पाएंगे .

थोड़ी देर में राजेश ने आकर बर्तनों को धोना शुरू कर दिया और इस तरह सारे बर्तनों ने एक दूसरे से विदा ली और वापिस अपनी जगह पर जाकर बैठ गए.

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Written by Akash Deep

Curious about design, numbers and behaviour.

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